होलाष्टक 13 मार्च से 20 मार्च सावधान, भाग्य मंथन, गुरु राहुलेश्वर जी

होलाष्टक 13 मार्च से 20 मार्च तक सावधान

नमो नारायण मित्रों मैं राहुलेश्वर स्वागत करता हूँ आपका भाग्य मंथन में।

आज हम बात करेगें होलाष्टक के बारे में। 2019 में होलाष्टक 13 मार्च से 20 मार्च तक रहेगें है।

होलाष्टक शब्द को होली से जोड़कर देखा जाता है। पंचांग में होलाष्टक प्रारम्भ होने के साथ ही होली के आगमन की जानकारी सबको हो जाती है। फाल्गुन मास की शुक्ल पक्ष की अष्टमी से लेकर होलिका दहन तक के समय को होलाष्टक की संज्ञा दी गई है।

होलाष्टक के आठ दिन क्यों मानें जाते है अशुभ और इस समय पर कोई शुभ कार्य नहीं किया जाता, इसके लिए होलाष्टक से जुड़ी एक पौराणिक कथा को जानें।

पौराणिक कथा के अनुसार दक्ष प्रजापति ने भगवान शिव का अपमान करने हेतु एक यज्ञ का आवाहन किया। उस यज्ञ में उन्होंने पूरे विश्व से योग्य ब्राह्मण बुलाये और सभी देवी देवताओं का आवाहन किया लेकिन भगवान शिव और अपनी पुत्री सती को नही बुलाया। पिता द्वारा न बुलायें जानें और भगवान शिव के मना करने पर भी माता सती पिता द्वारा आयोजित यज्ञ में चली गयी।

यज्ञ स्थल पर पहुंचने पर माता सती की सबने अवहेलना करी और पिता ने भगवान शिव को अपशब्द कहे जिससे माता सती बहुत दुखी हुई इस कारण से माता ने वही यज्ञ कुण्ड में अपनी योग अग्नि से स्वयं को भस्म कर लिया।

माता सती द्वारा खुद को भस्म कर लेने से भगवान शिव वियोग में डूब गये और घोर तपस्या में लीन हो गये। समय बीतता चला गया और माता सती ने हिमालय की पुत्री के रुप में शिव मिलन के लिये जन्म लिया।

भगवान शिव के घोर तपस्या में जाने से राक्षस प्रबल हो गये और सृष्टि अस्त व्यस्त होने लगी। तब देवताओं ने सृष्टि कल्याण के उद्देश्य से भगवान शिव और माता सती के मिलन की योजना बनायी। इस योजना में कामरुपी कामदेव को भगवान शिव के वैराग्य को भंग करने के लिए नियुक्त किया गया। कामदेव मैथुनी सृष्टी को चलाकर सृष्टि विस्तार के कारक है।

फाल्गुन मास की शुक्ल पक्ष की अष्टमी को कामदेव ने कामबाणों का प्रयोग भगवान शिव पर किया इससे कामविजयी भगवान शिव क्रोधित हो गये और उन्होनें अपने तीसरे नेत्र की प्रचंड अग्नि से कामदेव को भस्म कर दिया।

क्योंकि कामदेव प्रेम और सृष्टि विस्तार में सबसे बड़ी भूमिका निभाते है इसलिए यह समय पूरी सृष्टि के लिए शोक का भी था। इसके पश्चात् कामदेव की पत्नी ने भगवान शिव से क्षमा याचना की और कामबाणों के प्रयोग का कारण बताया तब भगवान शिव शान्त हुऐ और कामदेव को दुबारा द्वापर में श्रीकृष्ण के पुत्र के रुप में जन्म लेने का आर्शिवाद दिया।

प्रेम के कारक कामदेव के अष्टमी के दिन भस्म होने के कारण इस दिन से होली तक का समय सभी प्रकार के शुभ कार्यों के लिए सही नही बताया गया है। इस समय पर विवाह, नये घर में प्रवेश, नये वस्त्र खरीदना, किसी भी नये कार्य को शुरु करना अशुभ बताया गया है।

होलाष्टक के आठ दिनों में ही परम विष्णु भक्त प्रहलाद को भी मृत्युतुल्य यातनाऐं दी गयी थी इसलिए भी इस समय को शुभ नही बताया गया है।

ज्योतिषीय मान्यता के अनुसार भी चन्द्रमा अष्टमी के दिन कमजोर व बुरा प्रभाव देने वाला होता है, नवमी तिथि पर सूर्य काफी उग्र रहते है, दशमी तिथि को शनि, एकादशी को शुक्र, द्वादशी को बृहस्पति देव, त्रयोदशी को बुध, चतुर्दशी तिथि को मंगल और पूर्णिमा के दिन राहु उग्र और बुरा प्रभाव देने वाले होते है।

पौराणिक कथाओं और मान्यताओं के कारण ही इस समय को बुरा प्रभाव देने वाला बताया गया है।

आप सभी को रंगों के त्योहार होली की बहुत बहुत शुभकामनाऐं।

इसी के साथ आज के लिए आज्ञा चाहते है आप सभी का जीवन शुभ और मंगलमय हो।

।। नमो नारायण ।।

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