नमो नारायण मित्रों, मैं राहुलेश्वर स्वागत करता हूँ आपका भाग्य मंथन में।
आज हम श्रवण करेगें महा-पुण्यकारी सोमवार व्रत कथा का और जानेगें इसको करने से क्या लाभ होते है।
एक बार की बात है एक नगर में एक धनी साहूकार रहता था, पूरे नगर में उसके नाम शोहरत की चर्चा थी, लेकिन उसकी कोई संतान नही थी, इस कारण से साहूकार और उसकी पत्नी बहुत दुःखी रहते थे। भगवान शंकर का वह परम भक्त था और प्रत्येक सोमवार पूरी श्रद्धा के साथ भगवान शिव और पार्वती जी के लिए व्रत रखता था। साहूकार की इस भक्ति को देखकर पार्वती जी प्रसन्न हो गई और उन्होनें भगवान भोले शंकर को साहूकार और उसकी पत्नी की मनोकामना पूर्ण करने की प्रार्थना करी।
जय भोलेनाथ
पार्वती जी की प्रार्थना सुनकर भगवान भोले शंकर ने परम प्रिय पार्वती जी से कहा, हे पार्वती, इस संसार में हर प्राणी आपने कर्मों का फल भोगने आया है, हर प्राणी को अपने प्रारब्ध, संचित और क्रियामाण कर्मों का फल भोगना ही पडता है, उसमें हमारा कोई हस्तक्षेप नही होता। लेकिन पार्वती जी साहूकार की भक्ति से बहुत प्रसन्न थी इसलिए साहूकार को पुत्र प्राप्ति का वरदान देने के लिए फिर आग्रह करने लगी, माता पार्वती के बार-बार आग्रह करने पर भगवान भोले शंकर ने कहा कि यदि मैं साहूकार को वरदान दे भी देता हूँ तो भी उस बालक की आयु बारह वर्ष ही होगी उसके बाद वो मृत्यु को प्राप्त हो जायेगा। ऐसा कहकर भगवान भोले शंकर ने साहूकार को पुत्र प्राप्ति का वरदान दे दिया।
जय सोमनाथ
भगवान भोले शंकर के आर्शिवाद से साहूकार के यहाँ पुत्र हुआ, नामकरण संस्कार के दिन ब्राह्मण देव ने जब बच्चे की पत्रिका का विश्लेषण किया तो पाया कि बालक की आयु मात्र बारह वर्ष है, जब माता-पिता को इस बात का पता लगा तो उनकी सारी खुशियाँ मातम में बदल गयी, तब ब्राह्मण ने समझाया कि जिन भोले शंकर के परम पवित्र व्रत को करके तुमने इस बालक को पाया है उन्हीं भोले शंकर की पूजा अराधना करते रहो वो ही इस बालक को लम्बी आयु भी देगें, यह सुनकर साहूकार की भ्रमित मति सही दिशा में चलने लगी। अब वह पहले की तरह भगवान भोले शंकर की पूजा करने लगा।
जय शिव शंकर
भगवान भोले की पूजा साहूकार सच्चे ह्दय से रोज करता, ऐसा करते करते ग्यारह वर्ष बीत गये बालक बडा हो गया, एक दिन साहूकार ने बालक के मामा को सन्देशा देकर बुला लिया और खूब सारा धन लेकर बालक को आगे की विधा प्राप्ति के लिए भगवान भोले शंकर की नगरी काशी भेज दिया और साथ में बालक के मामा को भी यह बोला की मार्ग में पडने वाले सारे तीर्थ और मन्दिरों में यज्ञ करवाना और यज्ञ करने वाले ब्राह्मणों को वस्त्र, दक्षिणा और भोजन जरुर करवाना।
जय कृपानिधान
मामा और भांजा यज्ञ करवाते हुऐ ब्राह्मणों को भोजन और दान-दक्षिणा देते हुऐ काशी की ओर बढते रहे तभी मार्ग में एक नगर पडा, इस नगर के राजा कि कन्या का विवाह के काने राजकुमार से होने जा रहा था, राजकुमार के पिता ने राजकुमार के काने होने की सूचना किसी को भी नही दी थी, राजकुमार के काने होने की खबर मिलते ही कन्या की पिता विवाह तोड देगा इस भय से राजकुमार के पिता ने अपने पुत्र के काना होने की बात को छुपाने के लिए एक चाल सोची। साहूकार के पुत्र को देखकर उसके मन में एक विचार आया। उसने सोचा क्यों न इस लड़के को दूल्हा बनाकर राजकुमारी से विवाह करा दूं। विवाह के बाद इसको धन देकर विदा कर दूंगा और राजकुमारी को अपने नगर ले जाऊंगा।
जय ताडकेश्वर महादेव
लड़के को दूल्हे का वस्त्र पहनाकर राजकुमारी से विवाह कर दिया गया। लेकिन साहूकार का पुत्र एक ईमानदार शख्स था। उसे यह बात न्यायसंगत नहीं लगी। उसने अवसर पाकर राजकुमारी की चुन्नी के पल्ले पर लिखा कि “तुम्हारा विवाह मेरे साथ हुआ है लेकिन जिस राजकुमार के संग तुम्हें भेजा जाएगा वह एक आंख से काना है। मैं तो काशी पढ़ने जा रहा हूं इतना कह कर साहूकार का पुत्र और उसके मामा काशी चले गए।
जय पशुपतिनाथ
राजकुमारी ने सारी बात अपने माता पिता को बता दी सत्य जानकर राजा ने अपनी पुत्री को विदा नही किया और काने राजकुमार की बारात वापिस चली गयी। दूसरी ओर साहूकार का लडका और उसके मामा काशी पहुँच गये और वहाँ जाकर यज्ञ, ब्राह्मणों को भोजन और दक्षिणा देने लगें, बारह वर्ष जिस दिन पूरे हुऐ उस दिन साहूकार के पुत्र के प्राण निकल गए। भांजे का मृत देख मामा विलाप करने लगा।
जय महाकाल
तभी संयोगवश भगवान भोले शंकर और माता पार्वती उधर से जा रहे थे। तभी माता पार्वती जी ने साहूकार के पुत्र को देखा और कहा प्रभू यह तो वही साहूकार का पुत्र है जिसे अपने वरदान दिया था, अब देखिये यह मृत्यु को प्राप्त हो गया है और इसका मामा कितना विलाप कर रहा है, इसके पिता ने आपकी सेवा पूरे जीवन करी और इस बालक ने भी पूरे जीवन आपके नाम से व्रत उपवास करें है, कृपा करके आप इस बालक को प्राण दान दे और इसे फिर से जिवित करें। माता पार्वती के आग्रह और साहूकार के व्रत के प्रभाव के कारम भगवान भोले शंकर पहले ही प्रसन्न थे इसलिए भोले शंकर ने बालक के प्राण दान दिया और पूरी आयु भोगने का वरदान भी दिया।
जय दीनानाथ
अब मामा-भांजा वापिस अपनी नगरी को चल पडें, रास्ते में वही नगर दुबारा पडा जहाँ साहूकार के लडके का विवाह हुआ था, लडके को ससुर ने पहचान लिया और यज्ञ का आयोजन कर अपनी कन्या विदा कर दी।
जय देवों के देव महादेव
दूसरी तरफ साहूकार और उसकी पत्नी अपने बेटे की प्रतीक्षा कर रहे थे और प्रण लिये हुऐ थे कि यदि बेटे की मृत्यु का समाचार मिला तो वह अपने भी प्राण त्याग देगें, परन्तु बेटे को जीवित पाकर वह बहुत प्रसन्न हुऐ और माता पार्वती और भोले शंकर की स्तुति करी।
जय नीलकण्ठ
जिस दिन बेटा अपने घर वापिस लौटा उसी दिन भगवान भोले शंकर ने साहूकार को स्वप्न में दर्शन दिये और बोले, यह व्रत एक समय पर पार्वती जी ने कृतिकाओं के कहने पर किये थे और कार्तिकेय जी को आज्ञाकारी बनाया था, उसके पश्चात् कार्तिकेय ने इस व्रत को कर अपनी सभी इच्छाऐं पूर्ण करी थी, इस व्रत का प्रभाव सब इच्छाऐं पूर्ण करने वाला है, तेरे द्धारा किये सोमवार के व्रतों से मैं बहुत प्रसन्न हूँ, इसलिए तेरे पुत्र को लम्बी आयु प्रदान की है।
जय भोले भण्डारी
जो कोई भी पुण्यकर्मी शुभ प्रभाव में आकर इस कथा को सुनता है, सुनाता है, या किसी के श्रवण करने का कारण बनता मैं उसकी सभी मनोकामनाऐं अवश्य ही पूर्ण करता हूँ।
जय भोले शंकर
सोमवार व्रत विधि
- सोमवार व्रत में व्यक्ति को प्रातः काल स्नान शुद्धि कर के भगवान भोले शंकर को जल चढाना चाहिए और गौरी-शंकर की पूजा विधि पूर्वक करनी चाहिए।
- व्रत के दिन सोमवार व्रत कथा सुननी और सुनानी चाहिए।
- सोमवार का व्रत शाम तक किया जाता है और उसके बाद भोजन किया जाता है।
- सोमवार व्रत तीन प्रकार के होते है,
1) सोलह सोमवार व्रतः अविवाहित कन्या यदि इस व्रत को करें तो शीघ्र ही उत्तम वर की प्राप्ति होती है, इस व्रत को वो महिलायें भी कर सकती है जो अपने गृहस्थ जीवन में बहुत परेशान हो।
2) सोमवार प्रदोष व्रतः ऐसा बताया जाता है कि इस व्रत को करने से सभी इच्छाऐं पूर्ण होती है।
3) प्रति सोमवार व्रतः यह व्रत प्रत्येक सोमवार को लिया जाता है और इसको करने वाले को मृत्यु पश्चात् शिवलोक की प्राप्ति होती है।
आज के लिए इतना ही, कल फिर मिलेगें बढते ज्ञान रथ के साथ, आपका आज का दिन शुभ व मंगलमय हो।
।। ओऊम् नमः शिवाय ।।