नमो नारायण मित्रों। मैं राहुलेश्वर। स्वागत है आपका भाग्य मंथन में,
आज हम चर्चा करेगें ज्योतिष के एक ऐसे दोष के बारे में जोकि आमतौर पर 70 प्रतिशत लोगों की जन्मकुण्डली में पाया जाता है, इस योग का नाम है पितृ दोष।
आईये सबसे पहले जाने पितृ दोष का अर्थ क्या होता है।
पितृ शब्द उनके लिए प्रयोग किया जाता है जिनके वंश में हमने जन्म लिया होता है, और जो मृत्यु पश्चात् तृप्त होकर पितृलोक में पितृ योनि में चले गये है। और दोष का अर्थ यहाँ पितृ गति में किये जाने वाले कार्यों में निहित त्रुटियों को दर्शाता है जिसके चलते मृत्यु पश्चात् आत्मा पितृ बनने की जगह प्रेत योनि में ही फंस के रह जाते है। जब हमारे कुल से सम्बन्धित किसी आत्मा की पितृलोक के लिए गति नहीं होती और वह प्रेत योनि में पीड़ा पाते है तो इसका अशुभ फल हमें भी प्राप्त होता है। हमारे पितृ ही हमारे जीवन का कारण होते है और इसी कारण से हमारे ऊपर पितृ ऋृण बनता है जिसे उतारने के लिए हमें पितरों के निमित्त अपने उत्तरदायित्वों का वहना श्रद्धा पूर्वक करना होता है। यदि समय से इस दोष का सटीक निवारण नहीं करा जाता तो यह हमारी जन्म-कुण्डली में प्रदर्शित होने लगता है, और जैसे जैसे हमारी आयु बढती है हमें इस दोष से सम्बन्धित समस्याऐं आने लग जाती है।
अब प्रश्न यह उठता है कि जन्म-कुण्डली में पितृ दोष का निर्माण कब होता है। आईये मुख्य पितृ दोषो की पहचान करें।
- जब लग्न का स्वामी नीच राशिस्थ हो, छठे, आठवें या बारहवें भाव में हो, लग्न का स्वामी राहु के साथ हो या राहु लग्न स्थान में शत्रु राशि में ही विराजमान हों।
- सूर्य जो कि प्रकाश से सम्बन्धित है उसका नीच राशि तुला में जाना, सूर्य का राहु के साथ होना, सूर्य का शनि के साथ होना, सूर्य का शनि की राशि में विराजमान होना।
- कुटुम्ब भाव में सूर्य का राहु की दृष्टि से प्रभावित होना, कुटुम्भ भाव पर राहु की दृष्टि होना, कुटुम्ब भाव से छठे, आठवे और बारहवें भाव में राहु, शनि या सूर्य राहु की युति होना।
- सप्तम भाव में राहु का शत्रु राशि में जाना ।
ऐसे कई योगों के चलते पितृ दोष का निर्माण होता है।
पितृ दोष बनने का मुख्य कारण क्या है।
जन्म-कुण्डली में पितृ दोष बनने का सबसे बडा और मुख्य कारण कर्तव्यों से दूर भागना और कर्तव्यों को अनदेखा करना है, पितृ दोष जन्म-कुण्डली में तभी स्थान बनाता है, जब हम और हमारे घर के बडे बूढें अपने कर्तव्यों और दायित्वों से दूर भागने लग जाते है। जन्म के साथ ही मनुष्य अपने पितरों का ऋणी हो जाता है क्योंकि वंश वृद्धि और उसके पालन में कही न कही पितरों का उपकार होता है हमारे पितृ हमें सदैव हमारी उन्नति के लिए प्रेरित करने वाले और जीवन की विपरीत परिस्थितियों में मार्ग दिखाने वाले होते है, वह कभी हमारा बुरा नही चाहते लेकिन जब हम गलत कार्यों में लिप्त होकर कुल की मान मर्यादा के विरुध कार्य करते है, और पूर्वजों दवारा निर्मित नियमों की अवहेलना करते है, पितृ पक्ष पर अपने पितरों के प्रति श्रद्धा भाव नही दिखाते, घर के अच्छे कार्यों में उनके उपकारों और प्रेम को याद नही करते तो पितृ रुष्ठ हो जाते है, और तब पितृ दोष का निर्माण होता है, जब एक बार दोष का निर्माण हो जाता है तो पितृ समस्याओं का रुप लेकर सकेंतों के माध्यम से परिवार के सदस्यों को यह बताने और समझाने की कोशिश करते है कि दोष उत्पत्ति हो चुकी है अब इसका समाधान ढूढों लेकिन हम नही समझते और इन समस्याओं की अनदेखी करते चले जाते है, इसी अनदेखी के चलते यह समस्या एक दिन जटिल और न सुलझने वाले पितृ दोष का रुप ले लेती है।
आईये अब जाने पितृ कितने प्रकार के होते है।
पितृ दो प्रकार के होते है।
- उर्ध्वगति को प्राप्त पितृः उर्ध्वगति को प्राप्त पितृ उच्च लोकों की तरफ गमन करने वाले होते है जिनके परिवार अच्छे कर्मों में लिप्त रहते है उन्हीं के पितृ इस गति को प्राप्त होते है, उर्ध्वगति को प्राप्त तृप्त पितृ सदैव अच्छी सोच और घर के बच्चों को अच्छी शिक्षा की तरफ प्ररित करते है और सदैव अपना आर्शिवाद बनाये रखते है, यह धार्मिक कर्मों में बस अपना सम्मान मांगते है, सम्मान न मिलने की स्थिति में ही रुष्ठ होते है परन्तु क्षमा याचना पर जल्दी मान भी जाते है।
- अधोगति को प्राप्त पितृः अधोगति को प्राप्त पितृ अतृप्त श्रेणी में आते है यह निरन्तर अपनी मुक्ति और परिवार द्धारा किये जा रहे गलत कार्यों से पीडित रहते है और इसी पीडा के चलते पितृ दोष का निर्माण होता है। अधोगति को प्राप्त पितृ जब ज्यादा पीडित हो जाते है तब परिवार के ऊपर एक ऐसा नकारात्मक आवरण बना देते है जिसके चलते कोई पूजा पाठ और ज्योतिषीय उपाय भी काम नही करता।
आईये अब जाने पितृ दोष से सम्बन्धित कुछ मुख्य लक्षणों के बारे में।
- पितृ दोष जब जटिल रुप ले लेता है तो परिवारजनों दुर्घटनाओं और असाध्य रोगों के चलते अल्पायु में मृत्यु होने लग जाती है।
- कई प्रयत्नों के बाद भी सन्तान उत्पत्ति नहीं होती।
- हर रुप से सम्पन्न होने के बाद भी बच्चों के विवाह नही होते और अगर हो भी जाते है तो कई कारणों से डाईवोर्स हो जाते है।
- अकारण ही कानूनी विवादों में फँस जाना और धन मान सम्मान की हानि होना।
- किसी त्योहार के दिन ही घर में बहुत क्लेश होना या त्योहार के दिन परिवार में किसी की मृत्यु हो जाना।
- कुटुम्ब के सदस्यों द्धारा आत्महत्या करने लग जाना, मन में आत्महत्या करने के भाव आने लगना।
- घर के मुख्य दरवाजों में रात्रि के समय आवाजे आना, घर पर पिशाचों की छाया आ जाना होने लगता है।
- बडे आर्थिक संकट एक दम से सामने आ जाना, कुडकी होने की सम्भावना बन जाना।
- किसी भूमि सौदे में पूरे जीवन की आय का फंस जाना।
- घर के किसी सदस्य का नशे की लत में बुरी तरह फँस जाना।
आईये अब जानें पितृ दोष शान्ति के लिए कुछ बहुत ही प्रभावपूर्ण और सरल उपाय।
- प्रत्येक अमावस्या के दिन भक्ति भाव से अपने पितरों का ध्यान करें, ध्यान के पश्चात् पीपल के पेड की जड़ मे कच्ची लस्सी, गंगाजल, काले तिल, चीनी, चावल, जल तथा पुष्प अर्पित करने के पश्चात 108 बार ओऊम् सर्व पितृ देवताभ्यो नमः मंत्र का जाप करना चाहिए।
- प्रत्येक संक्रान्ति पर सूर्य देव को लाल चन्दन युक्त जल चढाना चाहिए और ओऊम् नारायणाय विदमहे, वासुदेवाय धीमही, तन्नो विष्णु प्रचोदयात् मंत्र का जाप 21 बार करना चाहिए।
- प्रतिदिन कुल देवता और ईष्ट देवता का पूजन जरुर करना चाहिए।
- पितरों के नाम से गरीब छात्रों को पुस्तकें उपलब्ध करवायें, मन्दिर बनवाने में धन व श्रम दान करें।
- गरीब कन्याओं के विवाह में दिल खोलकर सहयोग करें, ऐसा करने से आपके पितृ दोष में बहुत कमी आयेगी।
- जन्म-कुण्डली में यदि पितृ दोष बन रहा हो तो घर के वास्तु को देखने के पश्चात् ही दक्षिण दिशा की दीवार पर पितरों के चित्र लगाकर रोज फूल माला चढायें।
- शाम के समय घर के मन्दिर में सरसों के तेल का दीपक जलाकर नाग स्तोत्र का पाठ करें, ऐसा करने से आपको बहुत जल्दी लाभ मिलेगा।
- पवित्र पीपल के वृक्ष जितने हो सके उतने लगवाये, इससे आपके पितरों जल्दी ही उर्ध्वगति प्राप्त होगी।
- किसी ब्राह्रमण का धन चालाकी से न छीने यदि गलती से छीन लिया हो तो मंगलवार के दिन अपने पितरों का ध्यान करके उस धन को वापिस कर दे, ब्राह्रमण का धन छीनने से भी पितृ कलंकित होते है और रुष्ठ होकर श्राप देते है, ब्राह्रमणों का सदैव सम्मान करें।
- पितरों की शान्ति और उनका आर्शिवाद प्राप्त करने के लिए सदैव नारायण नारायण का जाप करिये, ऐसा करने से आपको और आपके पितरों परम शान्ति की प्राप्ति होगी।
- जन्म कुंडली का किन्हीं योग्य ब्राह्मण से विश्लेषण करवायें और यदि पितृ दोष निकले तो विधि विधान से हरिद्वार स्थित नारायणी शिला पर नारायण बली पूजन करवायें। नारायण बली पूजन करवाने हेतु आप भाग्य मंथन (संस्कार ही जीवन आधार) में आप सम्पर्कं कर सकते है।
आज के लिए इतना ही कल फिर मिलेगें किसी नई समस्या के समाधान के साथ, आपका दिन शुभ और मंगलमय हो।
नमो नारायण