जन्म कुंडली क्या है ?

जन्म कुंडली क्या है ?, भाग्य मंथन, गुरु राहुलेश्वर जी

जन्म कुंडली क्या है?


जन्म कुंडली में दो शब्दों का प्रयोग किया गया है पहला जन्म और दूसरा कुंडली, जन्म से तात्पर्य पंचतत्वों से निर्मित कोशिकाओं के समूह में आत्मा का प्रविष्ट होना है और कुंडली शब्द का प्रयोग यहाँ उस गूढ रहस्य की तरफ ध्यान आकर्षित करने के लिए किया गया है जिससे हमारा और ब्रह्माण्ड का सीधा सीधा सम्बन्ध प्रकट करने का प्रयास किया गया है।

कुंडली का अर्थ है किसी चलायमान ईकाई द्वारा केन्द्र बिन्दु शक्ति का योजनाबद्ध तरीके से निरन्तर गतिशील रुप से शंक्वाकार रुप में परिक्रमा करना. यह शब्द मुख्य रुप से आकाश गंगा में गैलेक्सियों और नवग्रहों के भ्रमण मार्ग को दर्शाने के लिए प्रयोग किया जाता है. साधारण शब्दों में समझने का प्रयास करें तो जिस प्रकार सर्प कुंडली मार कर बैठता है उसी स्थिति की गतिशील रुप में परिकल्पना ही कुंडली है इसलिए जबसे जन्म कुंडली निर्माण शुरु हुआ तब से उसको एक लम्बे कागज पर बनाया जाता था जिससे वह एक साथ गोलाई में लपेट कर रखी जा सके. आजकल समय की कमी के कारण विद्वान ज्योतिषी हस्त लिखित लम्बी जन्म कुंडली बनाने से ज्यादा जन्म पत्रिका बनाते है. हालाकिं जन्म कुंडली और जन्म पत्रिका के अन्दर जानकारी एक जैसी ही होती है लेकिन बनावट के आधार पर इन दोनों का वर्गीकरण अवश्य होना चाहिए. जन्म कुंडली निर्माण सदैव एक कागज पर निरन्तर होता है और जन्म पत्रिका पुस्तक की भांति होती है जिसमें पृष्ठ होते है।

जिस प्रकार चलायमान नवग्रह कुंडली नुमा आकार में गोचर करते है ठीक उसी प्रकार हमारे शरीर में भी कुंडलिनि शक्ति का निवास होता है जोकि मूलाधार में निवास करती है। कुल मिलाकर जन्म कुंडली के शाब्दिक अर्थ को एक बार में समझने प्रयास करें तो इसका तात्पर्य यह है कि हमारे जन्म समय में हमारे शरीर के शक्ति केन्द्र और नवग्रहों की स्थितियों का सीधा सीधा सम्बन्ध है। इस बात की पुष्टि वेदों में निहित इस मंत्र से करी जा सकती है। मंत्रः यत् पिण्डे तत् ब्रह्माण्डे, अर्थात् जो सूक्ष्म रुप में हमारे पिण्ड में है वहीं ब्रहमाण्ड में भी है।

सरल शब्दों में जन्म कुंडली को जानेः जन्म कुंडली एक प्रकार का आकाशीय मानचित्र है जिससे जातक के जन्मकालिक चन्द्र राशि व ग्रह-नक्षत्रों की ठीक ठीक स्थितियों का पता लगाया जाता है. इसी मानचित्र (जन्म कुंडली) से यह ज्ञात होता है कि जातक के जीवन पर जन्मकालिक ग्रहों का क्या प्रभाव पडने वाला है।

जातक के भूतकाल में घटित हो चुकी घटनाओं और वर्तमान एवं भविष्य में घटित होने वाली घटनाओं  को जानने के लिए भचक्र (360) का वर्गीकरण 12 भावों में किया जाता है जोकि क्रमबद्ध तरीके से हमारे जीवनकाल के अलग अलग क्षेत्रों से जुड़ा होता है. मुख्य रुप से इन्हीं 12 भावों में जन्म राशि, नवग्रहों, और 27 नक्षत्रों की जन्मकालिक स्थितियों के आधार पर ही जातक फलित निकाला जाता है।