बारहवां भावः बारहवें भाव को अन्तिम, प्रान्त्य, रिष्क, अंत्य, ऋष्क, विनाश, व्यय, त्रिक आदि नामों से भी जाना जाता है।
बारहवें भाव विचार का श्लोकः
व्ययं च वैरिवृत्तान्त-रिःफमन्त्यादिकं तथा ।
व्ययाच्चैव हि ज्ञातव्यमिति सर्वत्र धीमता ।।
बारहवें भाव के श्लोक का अर्थः जातक के जीवन में सभी प्रकार के व्ययों, खर्चों, शत्रुओं, गुप्त शत्रुओं, वाम नेत्र, दुःख, पैर, खुफिया पुलिस, चुगलखोर, दरिद्रता, पाप शयनसुख आदि का विचार सदैव बारहवें भाव से करना चाहिए।