पहला भावः पहले भाव को प्रथम, लग्न, तनु, आत्मा, होरा, शरीर, देह, वपु, कल्प, मूर्ति, अंग, उदय, प्रथम केन्द्र के नाम से भी जाना जाता है।
जन्म कुंडली के पहला भाव विचार का श्लोक
देहं रुपं च ज्ञानं च वर्णं चैव बलाबलम् ।
सुखं दुःखं स्वभावञ्च लग्नभावान्निरीक्षयेत् ।।
पहले भाव विचार के श्लोक का अर्थः प्रथम भाव से जातक के शरीर, रुप, रंग, ज्ञान, रचना, शारीरिक बल, जीवन में आने वाले सुख-दुःख की मात्रा व अपने आस पास के लोगों के लिए किस प्रकार का स्वभाव रहेगा इन चीजों का ज्ञान प्राप्त होता है।
पहला भाव विचार मंथनः प्रथम भाव एक नई शुरुवात को प्रदर्शित करने वाला भाव है यहाँ से हमें उन सभी बातों का ज्ञान होता है जोकि पूर्वजन्म से सम्बन्धित होती है जैसे कि पिछले जीवन में हमारी क्या राशि थी और हमने अपने जीवन में किस प्रकार के कर्म किये. अच्छे कर्मों के फलस्वरुप जातक की मजबूत शुरुवात होती है प्रथम भाव जिसे लग्न की भी संज्ञा दी जाती है वह मजबूत स्थिति में रहता है। लग्न स्थान का ज्योतिष में बहुत महत्व होता है इससे जातक के सम्बन्ध में कई प्रकार की जानकारी प्राप्त होती है जैसे कि जातक का रुप, रंग कैसा होगा, मुख की आकृति, मस्तक का आकार और केशों का रंग कैसा होगा, उसके अन्दर बुद्धि बल की मात्रा कैसी होगी, उसकी शारीरिक संरचना किस प्रकार की होगी, स्वास्थ्य कैसा रहेगा, उसको जीवन में सफलता ज्यादा मिलेगी या असफलता, सामाजिक और पारिवारिक रुप से उसे सम्मान मिलेगा या अपमान, जीवन में सुख-दुःख कितना होगा और कब होगा। जातक में आत्मविश्वासी होगा या नहीं, वात-पित्त-कफ में किस की अधिकता होगी, शरीर में किस स्थान पर तिल, मस्सें या जन्म चिन्ह होगें, जातक का चरित्र कैसा होगा, विश्वासपात्र होगा या नहिं, गुणी होगा या अवगुणी. हालांकि रुप, रंग और शारीरिक रचना के बारे में प्रथम भाव का मंथन करते समय राशि, नक्षत्र और ग्रह प्रभाव के साथ-साथ देश, परिस्थिति और काल के नियम को जरुर प्रयोग करना चाहिए. उदाहरण लग्न पर चन्द्रमा और शुक्र का प्रभाव गौर वर्ण देता है लेकिन यदि फलित करते समय आपके पास किसी दक्षिण अफ्रीका के जातक की जन्म कुंडली होगी तो यहाँ रुप और रंग में ज्यादातर लोग सांवले या काले होते है।