नवा भावः नवें भाव को धर्म, भाग्य, पुण्य, नवम, त्रिकोण, शुभ, तप, दया, पौत्रिक, गुरु, शुक्र, अर्जित नामों से भी जाना जाता है।
नवें भाव विचार का श्लोकः
भाग्यं श्यालं च धर्मं च भ्रातृपत्न्यादिकांस्तथा ।
तीर्थयात्रादिकं सर्वं धर्मस्थानान्निरीक्षयेत् ।।
नवें भाव के श्लोक का अर्थः भाग्य प्रबल रहेगा या कमजोर, धर्म के मार्ग पर रहेगा या नहीं, भाई की स्त्री के विषय में, जीवन में तीर्थ यात्राओं पर जाना होगा या नहीं, गुरु, पुण्य कर्मों, तपस्या और साले का विचार सदैव नवम भाव से किया जाता है।