जन्म कुंडली के दूसरे भाव से क्या विचार किया जाता है, भाग्य मंथन, गुरु राहुलेश्वर जी

जन्म कुंडली के दूसरे भाव से क्या विचार किया जाता है।

दूसरा भावः दूसरे भाव को धन स्थान, कुटुम्ब, पणफर, द्रव्य, वित्त, वाक्, मारक, अक्षि, मृत्यु, कोश, अर्थ व द्वितीय स्थान के नाम से भी जाना जाता है।

दूसरे भाव विचार का श्लोक

धनधान्यं कुटुम्बांश्च मृत्युजालममित्रकम् ।

धातुरत्ननादिकं सर्वं धनस्थानान्निरीक्षयेत् ।।

दूसरे भाव के श्लोक का अर्थः दूसरे भाव से जातक के जीवन में धन और धान्य की स्थिति, कुटुम्ब की स्थिति व कुटुम्ब सम्बन्धि ज्योतिषीय दोष, मृत्यु समय की सम्भावना, शत्रु पक्ष, बहुमूल्य रत्न व धातु (सोना, चांदी) का विचार, वाणी और विधा का विचार किया जाता है।

दूसरा भाव विचार मंथनः दूसरा भाव मुख्य रुप से हमारी आर्थिक दशा को दर्शाता है. किसी भी कार्य को पूर्ण करने के पश्चात् सभी खर्चों को निपटाने के बाद जो बचत के रुप में भविष्य के लिए शेष बच जाता है वही यह भाव मुख्य रुप से दर्शाता है. दूसरे भाव से कुटुम्ब की आर्थिक स्थिति और रहन-सहन का ज्ञान भी होता है. परिवार के पास स्थायी सम्पत्ति है या नहीं, या फिर परिवार से आपको कोई सम्पत्ति प्राप्त होगी या नहीं इस बात का ज्ञान भी प्राप्त होता है. इस भाव से परिवार व अपने श्रम से एकत्रित बहुमूल्य रत्न, आभूषण एवं सोने, चाँदी का विचार भी किया जाता है. दूसरे भाव से गले का विचार भी किया जाता है और गले से निकलने वाली वाणी की मिठास व आक्रामकता को भी जाना जाता है. इस भाव से जातक की स्मरण शक्ति, दाहिनी आँख, नाक, ठुड्डी, दाँत, कान, नम्रता, भोजन की इच्छा, और वाकपटुता के सम्बन्ध में भी विचार किया जाता है. पितृ सम्बन्धी दोषों की जानकारी भी इस भाव से प्राप्त करी जाती है. पूरा जीवन जीने के पश्चात् अन्तिम समय प्राण कैसे निकलेगें या मृत्यु के कारण क्या होगें इस बात का विचार भी दूसरे भाव से किया जाता है. दक्षिण भारत में दूसरे भाव से मंगल दोष का निर्धारण भी प्रचलन में है क्योंकि यह भाव जीवनसाथी के सातवें भाव से आठवां होता है और आठवां भाव मृत्यु का होता है।

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