दशवां भावः दशवें भाव को आज्ञा, तात, राज्य, मान, गगन, नभ, आस्पद, व्योम, मध्य, निपुण, व्यापार, खं, मेषूरण, कर्म, दशमं, केन्द्र, स्व आदि नामों से भी जाना जाता है।
दशवें भाव विचार का श्लोकः
राज्यं चाकाशवृत्तिं च मानं चैव पितुस्तथा ।
प्रवासस्य ऋणस्यापि व्योमस्थानान्निरीक्षणम् ।।
दशवें भाव के श्लोक का अर्थः जातक के जीवन में राज्यपक्ष से लाभ होगा या नही, आकाश वृत्तान्त, सम्मान, पिता की स्थिति, प्रवास के अवसर आयेगें या नहीं, ऋण सम्बन्धि बातें, हुकूमत, ओहदा, जीवन में किसी बड़े पद की प्राप्ति होगी या नहीं, व्यापार के योग कैसे रहेगें, आजीविका का मुख्य साधन क्या होगा और आज्ञा आदि का विचार सदैव दशम भाव से किया जाता है।