तीसरा भावः तीसरे भाव को पराक्रम, उपचय, आपोक्लिम, दुश्चिक्य, वीर्य, धैर्य, कर्ण, भ्रात, सहज व तृतीय भाव के नाम से भी जाना जाता है।
तीसरे भाव विचार का श्लोकः
विक्रमं भृत्यभ्रात्रादि चोपदेश प्रयाणकम् ।
पित्रोर्वा मरणं विज्ञो दुश्चिक्याच्च निरीक्षयेत् ।।
तीसरे भाव के श्लोक का अर्थः तीसरे भाव से जातक के पराक्रम, नौकरों, भाई-बहन, उपदेश देने की क्षमता, छोटी और बड़ी यात्राओं, माता-पिता की मृत्यु और स्वयं के आयुष्य का विचार किया जाता है।