हस्तरेखा के योग

भविष्य में क्या होगा, अच्छा होगा या बुरा होगा। भविष्य को लेकर कभी सुन्दर स्वप्न देखना और कभी भविष्य को लेकर चिन्ता में डूबे रहना यह मनुष्य की स्वभाविक प्रवृति है। इच्छाओं के समुद्र में डूबा मनुष्य उन्हें पूरा करने के उद्देश्य से सदैव भविष्य जानने के लिए बहुत ही उत्सुक रहता है। एक इच्छा दूसरी 10 इच्छाओं की जननी होती है और इन बढती इच्छाओं की प्राप्ति भविष्य में सफलतापूर्वक हो पाये इसके लिए मनुष्य को भविष्य जानने में बहुत ही रुची रहती है।

देश, परिस्थिति और काल के अनुरूप हर जगह भविष्य जानने की अलग-अलग प्रकार की विधाओं की खोज हुई उन्हीं में से एक हस्तरेखा शास्त्र है। हाथ हमारे शरीर का एक अभिन्न अंग है जोकि मस्तिष्क द्वारा दिये संकेतों को सबसे जल्दी समझ के हमारे हित में कार्य करता है। हाथ से ही हम श्रम करते है, हाथ से ही हम भोजन करते है, हाथ से ही हम लेखन क्रिया व चित्रकारी भी करते है। मस्तिस्क के निर्देश सीधे हाथ को प्राप्त होते है और हाथ उन सभी कार्यों को करता है जो मस्तिष्क उसे करने को बोलता है। ऐसे में यह तो ज्ञात हो जाता है कि हाथ का मस्तिष्क से घनिष्ट सम्बन्ध होता है। मस्तिष्क में हमारे सभी जन्मों की सुप्त स्मृतियां सुरक्षित रहती है। जिसके चलते पिछले जन्मों के अच्छे व बुरे  कर्मो का प्रभाव और उनका फल रेखाओं के रुप में हमारे हाथों में प्रकट हो जाता है। इन्हीं रेखाओं के अध्ययन से भविष्य में होने वाली अच्छी और बुरी घटनाओं को जानने का प्रयास किया जाता है।

हस्तरेखा शास्त्र की खोज प्राचीन भारत में ही हुई थी। इस विज्ञान के बारे में जब पाश्चात्य सभ्यता को पता चला तो उन्होनें इसे धीरे धीरे अपनाना चालू कर दिया। हाथ की रेखाओं के महत्व को हमारे ऋषि मुनी बहुत अच्छे तरीके से जानते थे इसलिए उस समय से ही नीचे दिया गया मंत्र प्रचलन में आया।

कराग्रे वसते लक्ष्मीः करमध्ये सरस्वती। कर मूले स्थितो ब्रह्मा प्रभाते कर दर्शनम्।।

इसका अर्थ इस प्रकार है कि हाथ के अग्रभाग में धन-धान्य की देवी माता लक्ष्मी का वास होता है, हाथ के मध्य भाग में ज्ञान की देवी माता सरस्वती का वास होता है और हाथ के मूल भाग में सृष्टि रचयिता ब्रह्मा जी का वास होता है। सरल शब्दों में समझें तो धन-धान्य की प्राप्ति, ज्ञान अर्जन, और सृष्टि से सम्बन्धित सभी गूढ ज्ञान की प्राप्ति सभी हमारे हाथों में है।

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