वास्तु शास्त्र समस्या और उपचार

वास्तुशास्त्र पंचतत्वों से बनी इस पूरी सृष्टि से सम्बन्धित शास्त्र है। जिसमें वायु, जल, भूमि, अग्नि और आकाश को आधार बनाकर प्रत्येक वस्तु विशेष के लिए नियमों का निर्माण किया जाता है। इसमें आठों दिशाओं का वर्गीकरण पंचतत्वों के आधार पर किया जाता है और उसके पश्चात् प्रत्येक वस्तु को प्रयोग करने के लिए उसका स्थान निश्चित किया जाता है। जिससे प्रयोग की जाने वाली वस्तु हमारे लिये शुभ रहें।

वास्तुशास्त्र में आठ दिशाऐं बतायी गयी है और हर दिशा का स्वामित्व नवग्रहों और अन्य शक्तियों के पास बताया गया है। इसी नियम के हिसाब से सम्बन्धित दिशा में सम्बन्धित वस्तु को रखना चाहिए। अगर गलत दिशा में गलत वस्तु रख दी जायें तो उस वस्तु और दिशा से सम्बन्धित दोष की उत्पत्ति हो जाती है। इसी प्रकार वास्तुदोष का निर्माण होता है और हम धीरे धीरे परेशानियों के चक्रव्यूह में फंसते चले जाते है। इसलिए आईये समझें किस दिशा में कौन सी शक्ति होती है और उस शक्ति का क्या प्रभाव होता है।

उत्तरपूर्व दिशा (ईशान कोण)

पूर्व और उत्तर दिशा के बीच के स्थान को उत्तर पूर्व दिशा (ईशान कोण) कहते है। इस दिशा में उत्तर और पूर्व की शुभ दैवीय शक्तियाँ आकर मिलती है। यह स्थान सकारात्मक शक्तियों के घर में प्रवेश का होता है। इसी दिशा में घर के मन्दिर को भी रखा जाता है। घर में कोई पूजा हो या यज्ञ इसी दिशा में सारे शुभ कार्यों को करना बताया गया है। घर की इस दिशा में कभी भी कोई भारी सामान या कचड़ा नही रखना चाहिए।

लोहे की वस्तुऐं विशेष रुप से इस स्थान पर नहीं रखनी चाहिए। इस दिशा में लोहे की वस्तुऐं रखने से शनि का प्रभाव परिवार और उसके मुखिया पर पडता है और परिवार में असमय मृत्युऐं होती है। इस स्थान पर कुवांरे लोगों को भी नही सुलाना चाहिए वरना विवाह में बहुत देरी होती है। कोशिश करें की यह स्थान खाली और स्वच्छ रहे। पानी रखने के लिए यह स्थान सबसे अच्छा है। स्विमिंग पूल बनाने के लिए यह दिशा सबसे शुभ है। घर का मुख्य द्वार भी इस दिशा में सबसे शुभ होता है।

दक्षिणपूर्व दिशा (आग्नेय कोण)

दक्षिण और पूर्व दिशा के बीच में पडने वाली दिशा को दक्षिण-पूर्व (आग्नेय कोण) दिशा कहते है। इस कोण का प्रतिनिधित्व अग्नि करती है। इसलिए इस दिशा में विशेष ऊर्जा रहती है। इस दिशा में यदि वास्तुदोष हो तो घर में अशान्ति और तनाव रहता है। बिना कारण वाक युद्ध और लड़ाईयां होती रहती है। इस दोष के कारण नकारात्मक प्रभाव लगातार घर में बना रहता है। इस दोष के चलते आपको दूसरे के घर में शान्ति मिलती है और अपने घर में मन अशान्त रहता है।

अग्नि से सम्बन्धित कार्य इस दिशा में सबसे अच्छे रहते है। इसलिए इस दिशा में रसोई का होना वास्तु की दृष्टि से बहुत शुभ है। इस दिशा में बिजली से चलने वाले यन्त्र भी रखे जा सकते है। पानी और पानी से सम्बन्धित चीजें इस स्थान पर नही रखने चाहिए। इस दिशा में जल सम्बन्धी चीजें रखने पर अग्निभय और सोर्टसर्किट होने का डर बना रहता है। ट्रांसफार्मर, जनरेटर, इन्वर्टर इस दिशा में रखना सबसे शुभ है।

दक्षिणपश्चिम दिशा (नैऋत्य कोण)

दक्षिण और पश्चिम दिशा के बीच के स्थान में दक्षिण-पश्चिम दिशा पडती है। परिवार के मुखिया का कमरा इसी स्थान पर होना चाहिए। इस स्थान का प्रतिनिधित्व पृथ्वी तत्व करता है। इसीलिए यहां छोटे छोटे पेड़-पौधे लगाना बहुत शुभ होता है। इस स्थान पर पौधे लगाने से पूरे घर की नकारात्मक ऊर्जायें शान्त हो जाती है और घर में सकारात्म ऊर्जाओं का प्रवाह बढता है। नैऋत्य दिशा में आप सीढियाँ बनवा सकते है।

कच्चा माल रखने के लिए स्थान भी बना सकते है। इस जगह पर अधिक खिडकी दरवाजों से परहेज करना चाहिए। इस स्थान पर यदि आप अपनी तिजोरी रखे तो बहुत शुभ होता है। यहां मुख्य बेडरूम भी शुभ फल देता है। इस जगह पर कार पार्किंग, भारी अल्मारी आदि भी रख सकते है। इस स्थान पर शौचालय भूल कर भी नही बनवाना चाहिए।

उत्तरपश्चिम दिशा (वायव्य कोण)

उत्तर और पश्चिम दिशा के बीच की दिशा को उत्तर-पशिचम दिशा (वायव्य कोण) कहा जाता है। वायु तत्व इस कोण का प्रतिनिधित्व करती है। इस वजह से यहां खिड़की या रोशनदान का होना बहुत शुभ रहता है। यहां ताजी हवा के लिए स्थान होगा तो हमें स्वास्थ्य संबंधी कई लाभ प्राप्त होते हैं। यह स्थान ताजी हवा के लिए होता है। अगर इस स्थान पर दोष उत्पत्ति हो जाये तो परिवार में लड़ाई झगड़े होने लगते है। अगर यह स्थान खुला हो और यहाँ वायु के प्रवेश के लिए उपयुक्त व्यवस्था हो तो घर में किसी प्रकार का क्लेश नहीं होता है और ना ही स्वास्थ्य संबंधी परेशानियां रहती हैं।

इस स्थान पर आपके घर के बच्चों का अच्छे स्वास्थ्य और उनकी खुशी का राज भी छुपा है। आगर यह स्थान दोष मुक्त रखा जायें तो आपके बच्चे स्वस्थ्य और बहुत खुश रहेगें। इस स्थान पर अविवाहित कन्या का कमरा भी बनाया जा सकता है, इससे कन्या का विवाह में आने वाली बाधाऐं दूर होती है और जल्दी विवाह हो जाता है। यहां मेहमानों के रहने की व्यवस्था की जायें तो बहुत अच्छा रहता है। अगर आप घर का कुछ हिस्सा किराये पर देना चाहते है तो यह दिशा बिल्कुल सही है। इस स्थान पर बुजुर्गों को नहीं रखना चाहिए।

पूर्व दिशा

पूर्व दिशा के प्रतिनिधि देवता सूर्य है। पूर्व दिशा सौर मण्डलीय उर्जा प्राप्त करने का स्थान होता है। यही वह स्थान है जहाँ से अच्छी सोच, अच्छे कार्य करने का मार्ग हमें प्राप्त होता है। इस दिशा से आपके घर में 

खुशियां और सकारात्मक ऊर्जा आती है। इस वजह से यहां मुख्य दरवाजा बनाया जा सकता है। पूर्व दिशा में मुख्य द्वार बनाने से सुबह के समय सूर्य की रोशनी अन्दर प्रवेश करती है और घर के अन्दर रात्रि में उत्पन्न हुऐ सूक्ष्म कीटों को समाप्त कर देती है। पूर्व दिशा थोडी सी नीची हो तो ज्यादा अच्छा है।

यहां खिड़की, बालकनी बनाई जा सकती है। यहां पर बच्चों के लिए कमरा भी बनवाया जा सकता है। यदि आप इस स्थान पर पढ़ाई या अध्ययन संबंधी कार्य करते हैं तो आपका मुख पूर्व या उत्तर दिशा की ओर होना चाहिए। आपके घर में यदि यहां रसोईघर है, तो खाना बनाते समय आपका मुख पूर्व दिशा की ओर होना चाहिए। यदि यह संभव हो तो आप अपना मुख पश्चिम दिशा की ओर भी रख सकते हैं, लेकिन ध्यान रहे कि इस स्थान पर खाना बनाते समय आपका मुख दक्षिण दिशा की ओर नहीं होना चाहिए। ऐसा होने पर स्वास्थ्य संबंधी परेशानियां हो सकती हैं और यह वास्तु दोष उत्पन्न करता है।

पश्चिम दिशा

वास्तु के अनुसार, इस दिशा के स्वामी वरुण देव हैं। यह स्थान पूर्व दिशा के बिल्कुल विपरीत पड़ती है। इस स्थान पर डायनिंग हॉल बनवा सकते हैं। यहां सीढ़ियां बनवाई जा सकती हैं। यहां कोई भारी निर्माण कार्य भी करवाया जा सकता है। पश्चिम दिशा में दर्पण लगाना भी बहुत शुभ होता है। यहां बाथरूम भी बनवाया जा सकता है। गेस्ट रूम भी बनवाया जा सकता है। यहां स्टडी रूम भी शुभ फल प्रदान करता है।

उत्तर दिशा

इस दिशा के प्रतिनिधि धन के देवता कुबेर है। इस वजह से यहां नकद धन और मूल्यवान वस्तुएं रखी जा सकती हैं। यह दिशा ध्रुव तारे की भी है। आकाश में उत्तर दिशा में स्थित ध्रुव तारा उत्तर दिशा के स्थायित्व को दर्शाता है। यहां मुख्य दरवाजा भी श्रेष्ठ फल देता है। यहां बैठक की व्यवस्था भी की जा सकती है या खाली स्थान भी छोड़ा जा सकता है। यहां बाथरूम भी बनवा सकते हैं। ध्यान रखें, इस दिशा में बेडरूम नहीं बनवाना चाहिए। उत्तर दिशा में  स्टोर रूम, स्टडी रूम या भारी मशीनरी नहीं होनी चाहिए।

दक्षिण दिशा

यह स्थान मृत्यु के देवता यमराज का स्थान है। दक्षिण दिशा का सम्बन्ध भूतकाल और हमारे पितरों से भी होता है। यहां भारी सामान रखा जा सकता है। इस स्थान पर रसोईघर भी हो सकता है। यहां पानी का टैंक बनवा सकते हैं और सीढ़ियां बनवा सकते हैं। यहां बच्चों का कमरा नहीं बनवाना चाहिए। स्टडी रूम, बाथरूम और खिड़की नहीं होनी चाहिए। यदि इस स्थान पर बेडरूम है तो सोते समय हमारा सिर दक्षिण दिशा की ओर होना चाहिए। दक्षिण दिशा में बालकनी और बगीचे के लिए जगह नहीं बनानी चाहिए और इस स्थान को खुला भी नही छोड़ना चाहिए।

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