ज्योतिष शास्त्र

जब किसी बच्चे का जन्म होता है और वह सर्वप्रथम माता के गर्भ से बाहर आने के पश्चात् अपने नेत्र खोलता है तब उसे इस संसार के दर्शन नेत्र ज्योति द्वारा ही होते है। नेत्रों में बसी यह ज्योति ही सृष्टि के सभी जीवों को आपस में देखने और समझने की शक्ति प्रदान करती है। जैसे जैसे सृष्टि का विस्तार होता चला गया वैसे वैसे नेत्र ज्योति से प्राप्त ज्ञान का संग्रह होने लगा, जिससे परम्परागत सोच, पारिवारिक नियमों, सामाजिक नियमों, वैज्ञानिक एवं दार्शनिक विचारधाराओं को आने वाली नस्लों के लिए सुरक्षित रखा जा सके। ज्ञान का यह सम्पूर्ण संग्रह आज वेदों के नाम से जाना जाता है। भारत की संस्कृति पूर्ण रुप से वेदों से प्रभावित है इसलिए इसे भारतीय वैदिक संस्कृति भी कहा जाता है।

वेदों से ही हमें अपने धर्मिक, सामाजिक और वैज्ञानिक विचारधाराओं का ज्ञान होता है। भारतीय विधाऐं का प्रकाट्य भी वेदों से ही हुआ है। वेदों के 6 अंग बताये गये हैं।

1. शिक्षा, 2. कल्प, 3 व्याकरण, 4. निरुक्त, 5. छन्द, 6. ज्योतिष।

इन्हें षड् वेदागों के नाम से भी जाना जाता है। वेदों को भली प्रकार से समझने के लिए वेदों के इन 6 अंगों को भली प्रकार से समझना बहुत जरुरी है। वेदों में बताये गये मन्त्रों का सही तरीके से उच्चारण करने के लिए सही शिक्षा प्राप्त करना। यज्ञ और कर्मकाण्ड करने के लिए कल्प का ज्ञान बहुत आवश्यक है। शब्दों के रुप ज्ञान के लिए व्याकरण के बारे में पूर्ण जानकारी प्राप्त करना बहुत जरुरी है। शब्दों के अर्थ ज्ञान को भली प्रकार समझने के लिए निरुक्त का ज्ञान होना चाहिए। वैदिक छन्दों के ज्ञान को जानने के लिए छन्द का ज्ञान होना चाहिए और अनुष्ठानों के उचित काल निर्णय का निर्णय करने के लिए ज्योतिष का सम्पूर्ण ज्ञान होना चाहिए।

ज्योतिष शास्त्र वेदरुपी पुरुष का नेत्र है जिसके प्रकाश में ब्रह्मज्ञान की सभी शाखाओं को देखा जा सकता है। भूमि हो, भूगर्भ हो या फिर अन्तरिक्ष इन सभी का भूत, वर्तमान और भविष्य से सम्बन्धित ज्ञान जिस शास्त्र से प्राप्त किया जा सकता है वह ज्योतिष शास्त्र है।

निम्न कोटि की योनियों को भोगते हुऐ आत्म विकास के चरणों को एक-एक करके प्राप्त करते हुए जीव को मनुष्य योनि प्राप्त होती है। इस योनि को प्राप्त होते ही जीव में विकसित होने की भावना का विकास स्वतः ही होता चला जाता है ऐसे में उसके अन्दर असंख्य प्रश्न होते है जैसे क्या, क्यों, कैसे और कौन और इन सभी प्रश्नों के उत्तर जीव को ज्योतिष शास्त्र के माध्यम से प्राप्त होते है।

ज्योतिष शास्त्र का पहला स्कन्ध है गणित, दूसरा स्कन्ध है संहिता और तीसरा स्कन्ध है होरा अथवा जातक।

  1. गणित के अन्तर्गत समय शुद्धि के नियम है जिससे आकाशीय पिण्डों की गति, समय आदि का निर्धारण किया जाता है।
  2. संहिता के अन्तर्गत वह नियम आते है जो सदैव एक से रहते है जिनका संग्रह किया गया है।
  3. जातक या होरा शास्त्र में जीव से आकाशीय पिण्डों को जोड़कर उत्पन्न होने वाले प्रभावों का विवेचन किया गया है।

देखा जाये तो ज्योतिष के तीनों स्कन्धों का महत्व बराबर है लेकिन सबसे ज्यादा पूछ आजकल जातक या होरा शास्त्र की ही होती है।

होरा शास्त्र में 27 नक्षत्रों, 9 ग्रहों और 12 राशियों के आधार पर जातक के स्वभाव से लेकर उसके जीवन में घटने वाली सभी घटनाओं के बारे में जानकारी प्राप्त की जाती है।

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